ज़िंदगी गुज़र गयी मेरी तेरे ही....
(3)ज़िंदगी गुज़र गयी मेरी तेरे ही....
ज़िंदगी गुज़र गयी मेरी तेरे ही सज़दे में ओ-खुदा,
और एक तू है कि किसी और की दुआ क़ुबूल किये बैठा है !
मैँ भी हूँ तेरे ही बाग़ का फूल मेरे बागबान
फिर आखिर क़्यूं, तू मुझको अपनी नियामतों से मरहूम किये बैठा है !
मैँ अदना आदम-जात, मेरी हस्ती क्या मैँ तुझसे जवाब-तलब करूँ
कुछ लोगों की उम्मीदें जुडी हैं मुझसे,बस उनकी खातिर "ऐ-नीरज" तुझसे सवाल किये बैठा है !
है ये पता मुझको वक़्त से पहले और भाग्य से ज्यादा मिलता नहीं किसी को कुछ भी
देना हौंसला मेरे मौला कि मेहनत और कोशिश से "ऐ-नीरज" ये फलशफा बदलने बैठा है !!
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