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Neeraj Faizabadi Shayari

(1) इश्क़ का मुफलिसी से


इश्क़ का मुफलिसी से यारों कोई सरोकार नहीं होता
खाए हैं ज़ख्म इतने कि हुस्न पर अब ऐतबार नहीं होता

यूँ तो इश्क़ में भी हो रही है सौदेबाज़ी आजकल
है इश्क़ इबादत्त, हमसे इसका कारोबार नहीं होता

तेरे-मेरे दरमियाँ बस छोटी-सी है दूरी, हमदम
पर कभी तू इस पार तो कभी मैं उस पार नहीं होता

बन प्रेम-फ़कीर बैठा हूँ  तेरे दर पे, ओ-खुदा
सुना है कि बन्दा खाली झोली तेरे दरबार नहीं होता

महरूम रह जाते आप सब शायरी के लुत्फ़ से
ग़र "ऐ-नीरज" को यूँ इश्क़ का बुखार नहीं होता
​______नीरज " फ़ैज़ाबादी "______​

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